जो हासिल-ए-किताब था वो बाब आइने में था नज़र के हर सवाल का जवाब आइने में था बदन की धूप-छाँव में थी गर्द माह-ओ-साल की थी गर्दिशों में उम्र और शबाब आइने में था सज़ा अता के दरमियाँ है राब्ता अजीब सा गुनाह सब बदन में थे अज़ाब आइने में था निहाँ किसी की फ़िक्र में अयाँ किसी के ज़िक्र से ख़िरद के रंग जो भी थे हिसाब आइने में था सुरूर-ए-साज़-ए-ज़िंदगी फ़ना की क़ैद में रहा बका-ए-दर्द का अमीं रबाब आइने में था