जो इस ज़मीं से कभी फिर नुमू करूँगा मैं तो चेहरा चेहरा तिरी जुस्तुजू करूँगा मैं हूँ दर्द-मंद तुम्हारा मगर ये मत सोचो जो तुम कहोगे वही मू-ब-मू करूँगा मैं मिरी वफ़ा में कुछ अपनी ग़रज़ भी शामिल है सो अपने ज़ख़्म को पहले रफ़ू करूँगा मैं जो मुझ को देखेगा फ़ौरन पुकार उट्ठेगा कि इख़्तियार तुम्हें हू-ब-हू करूँगा मैं अगर जहाँ में कोई आइना नहीं तेरा तो फिर तुझी को तिरे रू-ब-रू करूँगा मैं ये ज़िंदगी तो सरी-उज़्ज़वाल है 'नजमी' दिल अपना इस के लिए क्यूँ लहू करूँगा मैं