जो इस तरह से मैं ख़ुद को पछाड़ लेता हूँ बना बनाया तअल्लुक़ बिगाड़ लेता हूँ मैं ना-समझ तो नहीं रंजिशों से लड़ता फिरूँ मैं रुख़ बदल के मोहब्बत की आड़ लेता हूँ जो गर्द ज़ेहन पे गिरती है बद-गुमानी की मैं गाहे गाहे उसे ख़ुद ही झाड़ लेता हूँ मैं राहतों से कभी मुतमइन नहीं होता मैं सोच सोच के ख़ुशियाँ उजाड़ लेता हूँ ये दर्द भी यूँही अटखेलियाँ नहीं करते कभी कभी मैं इन्हें छेड़-छाड़ लेता हूँ तुम्हारे दुख में कोई और दुख मिलाता नहीं मैं शब गुज़ार के ख़ेमा उखाड़ लेता हूँ किताब-ए-ज़ीस्त तुझे ग़म नहीं थमाता कोई मैं दिन गुज़ार के सफ़्हे को फाड़ लेता हूँ