जो ज़ौक़-ए-नज़र हो तो तुर्की में आ कर हयात-ए-अज़ीमा के आसार देखो लगा कर नई चश्मक-ज़नी हम-सरों से लक़ब जिस का था मर्द-ए-बीमार देखो मिटाने पे जिस के तुला था ज़माना उभरता है वो तुर्क-ए-तातार देखो ब-इज़हार-ए-जुरअत ये ज़ोर-ए-सदाक़त हुए किस तरह ज़ेर अग़्यार देखो ब-सद शान जाता है अंताक्या को अतातुर्क का ख़ाल-ए-जर्रार देखो जो सोए हुए थे जो खोए हुए थे किया उन को यक-लख़्त बेदार देखो सँभलती हैं गिर कर चमकती हैं मिट कर ये हैं ज़िंदा क़ौमों के अतवार देखो