जो ज़ौक़ है कि हो दरयाफ़्त आबरू-ए-शराब तो चश्म-ए-जाम से ऐ शैख़ देख सू-ए-शराब कभी तो दे गुल-ए-दस्तार-ए-शैख़ बू-ए-शराब क़बा की बेल में यारब लगे कदू-ए-शराब वो मस्त हैं जो हैं मजरूह-ए-तेग़-ए-मौज-ए-मय जिगर के चाक पे ऐ गुल बने सुबू-ए-शराब जो आशिक़-ए-लब-ए-बे-गून-ए-यार हो फ़रहाद तो बे-सुतून से भी जाए शीर-ए-जू-ए-शराब वो मस्त हैं कि जो तीजा पस-ए-फ़ना होगा हमारे फूल बनेंगे गुल-ए-कदू-ए-शराब हमेशा मय-कदे में ख़ुश-क़दों का मजमा है हज़ारों सर्व लगे हैं किनारे जू-ए-शराब लगाईं ताक के उस मस्त ने जो तलवारें दहान-ए-ज़ख़्म-ए-बदन से भी आई बू-ए-शराब डुबो दिया मुझे तूफ़ान-ए-मय ने ऐ साक़ी अमीक़-तर क़द-ए-आदम से निकले जू-ए-शराब नमाज़ शुक्र की पढ़ता है जाम तोड़ के शैख़ वज़ू के वास्ते लेता है आबरू-ए-शराब वो रश्क-ए-हूर मय-ए-मुश्कबू का ख़्वाहाँ है गुल-ए-बहिश्त है मुश्ताक़-ए-रंग-ओ-बू-ए-शराब सदा-ए-क़ुलक़ुल-ए-मीना से हो गया साबित कि पेट भर के करें मस्त गुफ़्तुगू-ए-शराब ब-रंग-ए-शीशा-ए-मय अब की फ़स्ल-ए-बारिश में करेंगे बैठ के कश्ती में सैर-ए-जू-ए-शराब खुला ये शीशों के झुकने से हाल ऐ साक़ी कि सर-कशी नहीं लाज़िम है रूब-रू-ए-शराब असीर-ए-दाम-ए-अलाएक हों किस तरह मय-ख़्वार कि रस्सियों में नहीं बाँधते सुबू-ए-शराब न हो जो किश्त-ए-अमल अपनी सब्ज़ ऐ साक़ी रियाज़-ए-ख़ुल्द से हम काट लाएँ जू-ए-शराब इलाज-ए-ज़ोफ़-ए-बसर नूर-ए-मय है मस्तों को हमारी आँखों की चश्मा बनेगी जू-ए-शराब पता लगा के गया सू-ए-गुलशन-ए-जन्नत कहाँ कहाँ नहीं की मैं ने जुस्तुजू-ए-शराब किसी ने साग़र-ए-मय से गुलों को दी तश्बीह नसीम-ए-बाग़ से आई जो आज बू-ए-शराब मिलेंगे साग़र-ओ-मीना जो ख़ाली उसे साक़ी करेंगे दीदा-ओ-दिल अपनी जुस्तुजू-ए-शराब किया जो मय-कशों ने अज़्म-ए-सैर-ए-आलम-ए-आब तो बदले तोंबों के हाथ आ गई कदू-ए-शराब ख़रीद-ए-जिंस-ए-शफ़ाअत में होगी कैफ़ियत हमारी गाँठ में है नक़्द-ए-आबरू-ए-शराब बहक के जाऊँ जो मस्ती में जानिब-ए-कौसर तो मुझ को दस्त-ए-सुबू खींच लाए सू-ए-शराब ये किस के आने से मय-ख़ाना में हुइ शादी दुल्हन के इत्र से मिलती है आज बू-ए-शराब बदन जो टूट रहा है ज़ुरूफ़-ए-मय के साथ बना है क्या गुल-ए-आदम से हर सुबू-ए-शराब वो रश्क-ए-मय करे बाला-ए-बाम मय-ख़्वारी इलाही आज ख़त-ए-कहकहशाँ हो जू-ए-शराब ज़ुरूफ़-ए-बादा-ए-गुल-गूँ हो मेरे काँधों पर फ़रिश्तों से भी मैं उठवाऊँ हर सुबू-ए-शराब खुला ये फूलों के होने से हाल ऐ ज़ाहिद पस-ए-फ़ना भी है रिंदों को आरज़ू-ए-शराब सुना है पास मसीहा के आफ़्ताब भी है करेंगे मौत के हीले से जुस्तुजू-ए-शराब न हो सकी कोई ताज़ीर-ए-मय-कशी साबित ज़ियादा हद से बढ़ी आज गुफ़्तुगू-ए-शराब गदा-ए-बादा हूँ उल्फ़त में चश्म-ए-मयगूँ के तिरे फ़क़ीर का तोंबा बना कदू-ए-शराब हुज़ूर-ए-दुख़्तर-ए-ज़र हाथ पाँव काँपते हैं तमाम मस्तों को राशा है रू-ब-रू-ए-शराब 'मुनीर' साक़ी-ए-कौसर से लूँ शराब-ए-तुहूर कभी मैं आँख उठा कर न देखूँ सू-ए-शराब