कोई नहीं आता समझाने अब आराम से हैं दीवाने तय न हुए दिल के वीराने थक कर बैठ गए दीवाने मजबूरी सब को होती है मिलना हो तो लाख बहाने बन न सकी अहबाब से अपनी वो दाना थे हम दीवाने नई नई उम्मीदें आ कर छेड़ रही हैं ज़ख़्म पुराने जल्वा-ए-जानाँ की तफ़्सीरें एक हक़ीक़त लाख फ़साने दुनिया भर का दर्द सहा है हम ने तेरे ग़म के बहाने फिर वहशत आई सुलझाने होश ओ ख़िरद के ताने-बाने फिर अपने आँचल से हवा दी शो'ला-ए-गुल को बाद-ए-सबा ने फिर वो डाल गए दामन में दर्द की दौलत ग़म के ख़ज़ाने आज फिर आँखों में फिरते हैं अहद-ए-तमन्ना के वीराने फिर तन्हाई पूछ रही है कौन आए दिल को बहलाने 'सैफ़' वो ग़म भी तिश्ना-ए-ख़ूँ है हम ज़िंदा हैं जिस के बहाने