जो कभी अपने थे वो हुए दूर हैं हम भी थक हार के हो गए चूर हैं ख़ूब चर्चे हैं अब अपने भी ग़ैरों में कल जो बदनाम थे आज मशहूर हैं औरों से करते हैं हँस के वो बात यूँ किस की आँखों के वो बन गए नूर हैं ज़िंदा-दिल बिन गुज़ारी है ये ज़िंदगी जो हुआ प्यार तो कैसे मजबूर हैं किस के वा'दे पे हम ने भरोसा किया वो जो कहते जफ़ाएँ तो दस्तूर हैं मौत सच्चाई है और इसे मान कर उन के हाथों हुए क़त्ल मशकूर हैं ये लड़ाई भी अब ख़ुद से है या-ख़ुदा फ़ैसले तेरे 'क़ासिद' को मंज़ूर हैं