जूँ क़दम यार ने घर से मिरे दर पर रक्खा सर रखा ज़ानू पे मैं हाथ जिगर पर रक्खा हम को सय्याद ने रक्खा जो क़फ़स में तो आह दस्त-ए-शफ़क़त कभी ज़ालिम ने न सर पर रक्खा संग-ए-रह उस की गली का जो कोई हाथ आया मिस्ल-ए-गुल मैं ने उठा कर उसे सर पर रक्खा बैठे बैठे तुझे कौन आ गया याद आज 'कमाल' तू ने रूमाल जो ले दीदा-ए-तर पर रक्खा