बुझते हुए शो'लों को हुआ क्यूँ नहीं देते फिर आ के हमें यार रुला क्यूँ नहीं देते या रूठ चलो मुझ से तो या टूट के बरसो हर रोज़ का झगड़ा है चुका क्यूँ नहीं देते शायद कि मलाएक तिरी नुसरत को उतर आएँ फ़रियाद से फिर अर्श हिला क्यूँ नहीं देते हर रोज़ का फ़ाक़ा है मशक़्क़त से कटेगा रोते हुए बच्चों को सुला क्यूँ नहीं देते वहशत के गली कूचों में तार उस की रिदा है सोए हुए इंसाँ को जगा क्यूँ नहीं देते