जो क़िस्सा-गो ने सुनाया वही सुना गया है अगर था इस से सिवा तो नहीं कहा गया है मुसाफ़िरत का हुनर है न वापसी की ख़बर सो चल रहा हूँ जिधर भी ये रास्ता गया है अमाँ को नील मयस्सर न मैं कोई मूसा मुझे सुपुर्द-ए-फ़राईल कर दिया गया है सबब नहीं था ज़मीं पर उतारने का मुझे सबब बग़ैर ही वापस उठा लिया गया है ये मुंतहा है मिरी ना-रसाई का शायद जो दूर हद्द-ए-नज़र से परे ख़ला गया है महक उठे हैं मिरे बाग़ के ख़स-ओ-ख़ाशाक कोई टहलता हुआ सूरत-ए-सबा गया है