जो कर के रफ़ू पैरहन नाचते हैं छुपाने को दर्द-ए-कुहन नाचते हैं ज़रा भी नहीं फ़िक्र सूद-ओ-ज़ियाँ की सर-ए-दार क्या बाँकपन नाचते हैं हुआ तज़्किरा जो तिरे गेसुओं का मिरे साथ अहल-ए-सुख़न नाचते हैं मता-ए-सफ़र लौट कर क़ाफ़िलों की भरे दश्त में राहज़न नाचते हैं तिरे नर्म होंटों की हिद्दत में 'शाफ़ी' शगुफ़्ता शगुफ़्ता समन नाचते हैं