जो ख़त है शिकस्ता है जो अक्स है टूटा है या हुस्न तिरा झूटा या आइना झूटा है हम शुक्र करें किस का शाकी हों तो किस के हूँ रहज़न ने भी लूटा है रहबर ने भी लूटा है याद आया इन आँखों का पैमान-ए-वफ़ा जब भी साग़र मिरे हाथों से बे-साख़्ता छूटा है हर चेहरे पे लिक्खा है इक क़िस्सा-ए-मज़लूमी बेदर्द ज़माने ने हर शख़्स को लूटा है मंज़िल की तमन्ना में सर-गर्म-ए-सफ़र हैं सब कौन उस के लिए रोए जो राह में छूटा है अल्लाह रे 'हफ़ीज़' उस का ये ज़ौक़-ए-ख़ुद-आराई जब ज़ुल्फ़ सँवारी है इक आइना टूटा है