जो ख़ुद पे बैठे बिठाए ज़वाल ले आए कहाँ से हम भी लिखा कर कमाल ले आए किवाड़ खोलें तो उड़ जाएँगी अबाबीलें न जाने ज़ेहन में कैसा ख़याल ले आए हर एक शख़्स समझ कर भी हो गया ख़ामोश अज़ल से चेहरे पे हम वो सवाल ले आए हैं राख राख मगर आज तक नहीं बिखरे कहो हवा से हमारी मिसाल ले आए सुलगती बुझती हुई ज़िंदगी की ये सौग़ात 'शमीम' अपने लिए माह-ओ-साल ले आए