जो कुछ भी है नज़र में सो वहम-ए-नुमूद है आलम तमाम एक तिलिस्म-ए-वजूद है आराइश-ए-नुमूद से बज़्म-ए-जुमूद है मेरी जबीन-ए-शौक़ दलील-ए-सुजूद है हस्ती का राज़ क्या है ग़म-ए-हस्त-ओ-बूद है आलम तमाम दाम-ए-रुसूम-ओ-क़़ुयूद है अक्स-ए-जमाल-ए-यार से वहम-ए-नुमूद है वर्ना वजूद-ए-ख़ल्क़ भी ख़ुद बे-वजूद है अब कुश्तगान-ए-शौक़ को कुछ भी न चाहिए फ़र्श-ए-ज़मीं है साया-ए-चर्ख़-ए-कबूद है हंगामा-ए-बहार की अल्लाह रे शोख़ियाँ ज़ाग़-ओ-ज़ग़्न का शोर भी सौत-ओ-सुरूद है