कोई भी हम-सफ़र नहीं होता दर्द क्यूँ रात भर नहीं होता राह-ए-दिल ख़ुद-ब-ख़ुद है मिल जाती कोई भी राहबर नहीं होता आह का भी न ज़िक्र कर ऐ दिल आह में भी असर नहीं होता दिल को आसूदगी भी क्यूँकर हो ग़म से शीर-ओ-शकर नहीं होता आह ऐ बे-ख़बर ये बे-ख़बरी दिल-ए-नादाँ ख़बर नहीं होता दिल की राहें जुदा हैं दुनिया से कोई भी राहबर नहीं होता अब तो महफ़िल से चल दिया 'फ़रहत' अब किसी का गुज़र नहीं होता