जो कुछ कि तुम सीं मुझे बोलना था बोल चुका बयान-ए-इश्क़ के तूमार कूँ मैं खोल चुका अज़ल सीं मुझ कूँ दिया दर्द साने-ए-तक़दीर मिरे नसीब के शर्बत में ज़हर घोल चुका जिन्नों के शहर में नहीं कम-अयार कूँ हुरमत मैं नक़्द-ए-क़ल्ब कूँ काँटे में दिल के तोल चुका मुझे ख़रीद किए तुम ने कम निगाही सीं कमीना बंदा-ए-बे-ज़र का आज मोल चुका नहीं रहा सुख़न-ए-आब-दार का मोती 'सिराज' तब्अ के सब जौहरों कूँ रोल चुका