जो लब पर तिरी दास्ताँ रख रहे हैं चराग़ों की लौ पर ज़बाँ रख रहे हैं हमें लोग कहते हैं ग़द्दार यारो कहाँ की ख़बर है कहाँ रख रहे हैं वो क्या ख़ाक पहुँचेंगे ऊँचाइयों पर ज़मीनों पे जो आसमाँ रख रहे हैं हमें वापसी का यक़ीं है तभी तो किनारे पे हम कश्तियाँ रख रहे हैं दिया बन के जलता हूँ मैं जिन की ख़ातिर वही राह में आँधियाँ रख रहे हैं वो ऐ 'नूर' तलवार कैसे उठाएँ किताबों में जो तितलियाँ रख रहे हैं