जो लज़्ज़त-ए-आशना-ए-दर्द-ए-हिज्राँ होते जाते हैं सर-ए-कू-ए-तमन्ना वो ग़ज़ल-ख़्वाँ होते जाते हैं सफ़ीना डूब ही जाएगा अब बहर-ए-तलातुम में हबाब-आसा हरीफ़-ए-मौज-ए-तूफ़ाँ होते जाते हैं वही बनते हैं बाइ'स दोस्तो बेताबी-ए-दिल का मोहब्बत में जो नज़दीक-ए-रग-ए-जाँ होते जाते हैं मता-ए-दिल जिन्हें सौंपी थी मैं ने राह-ए-उल्फ़त में तअ'ज्जुब है वही ग़ारत-गर-ए-जाँ होते जाते हैं दबिस्तान-ए-मोहब्बत में इक ऐसा दौर आता है कि औराक़-ए-किताब-ए-दिल परेशाँ होते जाते हैं असर बाद-ए-फ़ना होने लगा है जज़्बा-ए-दिल का वो मुझ को दफ़्न कर के अब पशेमाँ होते जाते हैं जुनूँ में भी 'मुज़फ़्फ़र' है हमें पास-ए-अदब हर-दम ब-क़द्र-ए-ज़र्फ़ महव-ए-हुस्न-ए-जानाँ होते जाते हैं