'मीर'-ओ-'ग़ालिब' की तरह सेहर-बयाँ से निकले By Ghazal << तिरे बाज़ुओं का सहारा तो ... जो लज़्ज़त-ए-आशना-ए-दर्द-... >> 'मीर'-ओ-'ग़ालिब' की तरह सेहर-बयाँ से निकले शे'र ऐसा भी कोई दिल से ज़बाँ से निकले अश्क से भीगे हुए मैं मिरे अल्फ़ाज़-ए-ग़ज़ल आग से कोई लपक जैसे धुआँ से निकले कोई सैलाब भी रोके से नहीं रुकता है रास्ता था ही नहीं फिर भी वहाँ से निकले Share on: