जो लिख न पाओ अगर मोहब्बत पे बस अज़िय्यत पे शे'र लिक्खो तुम्हारी वहशत का वास्ता है किसी भी क़ीमत पे शे'र लिक्खो हसीन आँखों को जाम लिखना गुलाब होंटों पे शे'र लिखना क़दीम शोअरा की जान छोड़ो रिदा की हुरमत पे शे'र लिक्खो तुम्हें भी रब ने ही है बनाया तुम्हारे अपने भी मसअले हैं तुम्हें ये किस ने कहा ऐ शाइ'र कि सिर्फ़ औरत पे शे'र लिक्खो कोई मरा है किसी की ख़ातिर कोई रुका है किसी की ख़ातिर ख़याली दुनिया से निकलो बाहर और अब हक़ीक़त पे शे'र लिक्खो चला रहे हैं बहुत से शोअरा यहाँ पे ग़ज़लों का काला धंदा सो तुम भी शेर-ओ-अदब का सौदा करो और उजरत पे शे'र लिक्खो वो जिस पे दुनिया की सारी ख़ुशियाँ हराम कर दी गई हैं 'सुन्दुस' समाज की उस सताई लड़की की काली रंगत पे शेर लिक्खो