जो मय-कदे से भी दामन बचा बचा के चले तिरी गली से जो गुज़रे तो लड़खड़ा के चले हमें भी क़िस्सा-ए-दार-ओ-रसन से निस्बत है फ़क़ीह-ए-शहर से कह दो नज़र मिला के चले कोई तो जाने कि गुज़री है दिल पे क्या जब भी ख़िज़ाँ के बाग़ में झोंके ख़ुनुक हवा के चले अब ए'तिराफ़-ए-जफ़ा और किस तरह होगा कि तेरी बज़्म में क़िस्से मिरी वफ़ा के चले हज़ार होंट मिले हों तो क्या फ़साना-ए-दिल सुनाने वाले निगाहों से भी सुना के चले कहीं सुराग़-ए-चमन मिल ही जाएगा 'राहत' चलो उधर को जिधर क़ाफ़िले सबा के चले