बहुत ज़िंदगी का भला चाहता हूँ ब-लफ़ाज़-ए-दीगर क़ज़ा चाहता हूँ मिरी वहशतों का सबब कौन समझे कि मैं गुम-शुदा क़ाफ़िला चाहता हूँ बुतों से हूँ बेज़ार इतना कि बस अब ख़ुदा ही ख़ुदा बस ख़ुदा चाहता हूँ ये दुनिया ये उक़्बा तो सब चाहते हैं मगर मैं कुछ इस के सिवा चाहता हूँ जुदागाना हैं अब यज़ीदी मज़ालिम सो मैं कर्बला भी जुदा चाहता हूँ अनासिर की ज़ंजीर को तोड़ कर मैं फ़ना चाहता हूँ बक़ा चाहता हूँ मुझे शक है होने न होने पे 'ख़ालिद' अगर हूँ तो अपना पता चाहता हूँ