जो मेहंदी का बुटना मला कीजिएगा पसीने को इत्र-ए-हिना कीजिएगा सितम कीजिएगा जफ़ा कीजिएगा यही होगा और आप क्या कीजिएगा फड़क कर निकल जाएगा दम हमारा क़फ़स से जो हम को रिहा कीजिएगा जो कहता हूँ अच्छा नहीं ज़ुल्म करना तो कहते हैं वो आप क्या कीजिएगा क़यामत में दीदार का कब यक़ीं है यूँही लन-तरानी सुना कीजिएगा कहा हाल-ए-दिल तो वो ये कह के उठ्ठे मैं जाता हूँ बैठे बका कीजिएगा शहंशाह कहते हैं उन के गदा से हमारे लिए भी दुआ कीजिएगा गुलों का वही पैरहन होगा साहब इनायत जो अपनी क़बा कीजिएगा किनारा भला तुम से ऐ बहर-ए-ख़ूबी डुबोने ही को आश्ना कीजिएगा मुनज्जिम ने हाथ उन के देखे तो बोला गुलों की क़बा को क़बा कीजिएगा मिरी जान के मुद्दई आप होंगे समाअ'त अगर मुद्दआ कीजिएगा बहुत नाज़-पर्वर्दा है दिल हमारा ज़रा लुत्फ़ इस पर किया कीजिएगा न दीवाना बनते जो मा'लूम होता परी बन के हम से उड़ा कीजिएगा बुतो बर्क़ हैं दर्द-मंदों की आहें ख़ुदा के ग़ज़ब से डरा कीजिएगा बहुत फ़ैज़ बख़्शी का सुनते हैं शोहरा हमारी भी हाजत रवा कीजिएगा ख़ुदा के लिए मीरज़ा-'मेहर'-साहब बुतों पर कहाँ तक मिटा कीजिएगा