जो मेरे गुनाहों पे नज़र रखते हैं एल्बम में वही तितली के पर रखते हैं ज़ुल्मत की समाअ'त में खुल पड़ता है मज़लूम के अल्फ़ाज़ असर रखते हैं किस वक़्त कहाँ कौन जलाता है चराग़ इतनी तो पतंगे भी ख़बर रखते हैं हैं आबले काँटों के लिए पैरवी में तारों के लिए दीदा-ए-तर रखते हैं बातें वो भला कैसे करेंगे खुल कर 'परवेज़' मियाँ दिल में जो डर रखते हैं