जो मिरे दिल में आह हो के रही By Ghazal << हम अहल-ए-आरज़ू पे अजब वक़... दिल दिया तब कि बहुत ज़ुल्... >> जो मिरे दिल में आह हो के रही वो नज़र बे-पनाह हो के रही मैं हूँ और तोहमत-ए-ज़बूनी-ए-दिल बे-गुनाही गुनाह हो के रही ख़लिश-ए-दिल पे कुछ भरोसा था वो भी तेरी निगाह हो के रही दिल की इशरत-पसंदियाँ तौबा हर तमन्ना गुनाह हो के रही Share on: