जो मुझ में छुपा मेरा गला घोंट रहा है या वो कोई इबलीस है या मेरा ख़ुदा है जब सर में नहीं इश्क़ तो चेहरे पे चमक है ये नख़्ल ख़िज़ाँ आई तो शादाब हुआ है क्या मेरा ज़ियाँ है जो मुक़ाबिल तिरे आ जाऊँ ये अम्र तो मा'लूम कि तू मुझ से बड़ा है मैं बंदा-ओ-नाचार कि सैराब न हो पाऊँ ऐ ज़ाहिर-ओ-मौजूद मिरा जिस्म दुआ है हाँ उस के तआ'क़ुब से मिरे दिल में है इंकार वो शख़्स किसी को न मिलेगा न मिला है क्यूँ नूर-ए-अबद दिल में गुज़र कर नहीं पाता सीने की सियाही से नया हर्फ़ लिखा है