कभी धनक सी उतरती थी उन निगाहों में वो शोख़ रंग भी धीमे पड़े हवाओं में मैं तेज़-गाम चली जा रही थी उस की सम्त कशिश अजीब थी उस दश्त की सदाओं में वो इक सदा जो फ़रेब-ए-सदा से भी कम है न डूब जाए कहीं तुंद-रौ हवाओं में सुकूत-ए-शाम है और मैं हूँ गोश-बर-आवाज़ कि एक वा'दे का अफ़्सूँ सा है फ़ज़ाओं में मिरी तरह यूँही गुम-कर्दा-राह छोड़ेगी तुम अपनी बाँह न देना हवा की बाँहों में नुक़ूश पाँव के लिखते हैं मंज़िल-ए-ना-याफ़्त मिरा सफ़र तो है तहरीर मेरी राहों में