जो मुझे मर्ग़ूब हो वो सोगवारी चाहिए मेरे सोयम में तुम्हें पोशाक भारी चाहिए ताज़ा हो बाग़-ए-तमन्ना आबियारी चाहिए आज तो ऐ चश्म-ए-तर कुछ अश्क-बारी चाहिए जब बहार आए तो कब परहेज़-गारी चाहिए साल-भर में चार दिन तो बादा-ख़्वारी चाहिए दिल जिगर से जब मैं कहता हूँ नहीं आएगा यार कहते हैं कुछ देर तो और इंतिज़ारी चाहिए हों हवास-ओ-होश अगर बाक़ी तो क्या लुत्फ़-ए-जुनूँ दिल न क़ाबू में हो वो बे-अख़्तियारी चाहिए रास आए तुम को मुल्क-ए-इश्क़ की आब-ओ-हवा आशिक़ो हर-वक़्त शग़्ल-ए-आह-ओ-ज़ारी चाहिए वस्ल की शब है वो पहलू में हैं तो सोने न दे हाँ मिरे दिल अब ज़ियादा बे-क़रारी चाहिए मौत बेकार आती है मरना हमारा है मुहाल आप की तलवार का इक ज़ख़्म कारी चाहिए रोते रोते मर गए हैं जो फ़िराक़-ए-यार में उन को बहर-ए-ग़ुस्ल मय्यत आब-ए-जारी चाहिए सीखी उन से दिलरुबाई आ गई फ़स्ल-ए-शबाब आज-कल दिल की तरफ़ से होशियारी चाहिए सर न उठ्ठे तेरी चौखट से न कूचे से क़दम तौक़ भारी चाहिए ज़ंजीर भारी चाहिए हो ज़ियादा रौशनी और देर तक बाक़ी रहे मेरी शम-ए-रूह को महफ़िल तुम्हारी चाहिए आप के लाओ-निअ'म ने तुर्फ़ा दिखलाया तिलिस्म ना-उमीदी कहती है उम्मीद-वारी चाहिए तेरे चेहरे के मुक़ाबिल हो अगर तो इस तरह आफ़्ताब-ए-हश्र को आईना-दारी चाहिए ये तुम्हारी जा नहीं आँखों के वा से हैं ये दर दिल में दूँ तुम को जगह ये पर्दा-दारी चाहिए बख़्श देता है 'रशीद' अल्लाह इतनी बात पर कर के इस्याँ आदमी को शर्मसारी चाहिए