जो न हो दर्द-आश्ना वो सरख़ुशी किस काम की शाइ'री तमसील या सूरत-गरी किस काम की ग़म जो औरों का हो अपना ग़म समझ कर लीजिए वर्ना दिल का सोज़ आँखों की नमी किस काम की एक जैसे हों अगर संग-ओ-समर क्या देखना सेहन-ए-यख़-बसता में कोई रौशनी किस काम की ख़ाक-दान-ए-तीरा में इक आलम-ए-रौशन भी है बे-जुनूँ भी ये मुनव्वर आगही किस काम की वो तो इक सैलाब था सब कुछ बहा कर ले गया नाम की तख़्ती सर-ए-दीवार थी किस काम की रंज हर्फ़-ए-ना-शुनीदा आसमाँ ना-आश्ना ऐ हवा-ए-दर्द आशुफ़्ता-सरी किस काम की इर्तिबात-ए-चश्म-ओ-लब का भी कोई सामाँ तो हो वर्ना उस ख़ाल-ए-सियह की दिलकशी किस काम की