जो ना-मुराद कूचा-ए-जानाँ में आ गए मरने से पहले गोर-ए-ग़रीबाँ में आ गए छूते ही मेरे मूंछ की तरह उखड़ गई बल लाखों तेरी ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ में आ गए लिक्खी हैं वहशियों के मुक़द्दर में दो जगह ज़िंदाँ से जब छुटे तो बयाबाँ में आ गए एलान-ए-दीद सुनते ही दो रोज़ पेशतर आशिक़ हज़ारों कूचा-ए-जानाँ में आ गए हम पागलों का और ठिकाना कहीं नहीं बस्ती में जब पिटे तो बयाबाँ में आ गए मुद्दत से थी इन्हें जो नमक-पाशियों की चाह ज़ख़्म-ए-जिगर उछल के नमकदाँ में आ गए वहशत में आ गया हमें बीवी का जब ख़याल उस को भी साथ ले के बयाबाँ में आ गए पिटवाया ख़ूब ही उन्हें दरबाँ के हाथ से जो बे-बुलाए महफ़िल-ए-जानाँ में आ गए आहा का और हू का अजब शोर मच गया जिस वक़्त 'बूम' बज़्म-ए-सुख़न-दाँ में आ गए