जो नसीहत दो मंज़ूर है आज आदमी कितना मजबूर है आज घर न रस्ता न साया न मंज़िल दर-ब-दर है जो मज़दूर है आज ज्ञान बाँटोगे ही तुम तुम्हारा पेट रोटी से भरपूर है आज इन ग़रीबों को जो था मयस्सर हाँ वो मज़दूरी भी दूर है आज जाने किस की नज़र लग गई है सारी दुनिया जो बे-नूर है आज