जो पस-ए-शोहरत है उस रुस्वाई के पीछे न जा ख़ामुशी को गुनगुना शहनाई के पीछे न जा इतना अर्सा दश्त में रह कर दिल-ए-वहशत-पसंद आख़िरी वक़्तों में इक दानाई के पीछे न जा जागती आँखों के ख़्वाबों पर यक़ीं क़ाएम रहे नींद बस धोका है इस जमहाई के पीछे न जा एक दिन ख़ुद शाह-ए-सहरा पाँव चूमेगा तेरे इस लक़ब को याद रख पुरवाई के पीछे न जा कुछ बदन अपनी थकन के बोझ से भी हैं निढाल टूटते जिस्मों की हर अंगड़ाई के पीछे न जा