कोई एहसास-ए-तमन्ना नहीं रहने वाला इश्क़ में कोई कहीं का नहीं रहने वाला इस को मंज़ूर है सहराओं में रहना लेकिन दिल तिरे दिल में दोबारा नहीं रहने वाला जो शजर छोड़ के जाता है परिंदा सुन ले आसमाँ में भी हमेशा नहीं रहने वाला मेरे माज़ी से मिरी अब भी बहुत बनती है मैं किसी हाल में तन्हा नहीं रहने वाला शर्त ये है कि रहे रूह-ओ-बदन एक जगह मैं किसी रिश्ते में वर्ना नहीं रहने वाला सोचता हूँ कि अब इस जिस्म में रहना छोड़ूँ सब को शिकवा है कि अच्छा नहीं रहने वाला लग ही जाएगी मुझे भी किसी प्यासे की दुआ मैं हमेशा ही तो सहरा नहीं रहने वाला इतनी रफ़्तार से घटता हूँ कि आने वाले एक भी शख़्स का हिस्सा नहीं रहने वाला ऐ मेरे दोस्त अब इस टूटे हुए रिश्ते में मैं तो रह जाऊँ भरोसा नहीं रहने वाला