जो पिन्हाँ था वही हर सू अयाँ है ये कहिए लन तरानी अब कहाँ है जो पहुँचे हाथ ज़ंजीरों को तोड़ें गरचे पाँव अपना दरमियाँ है चमक लाल-ए-ब-दख़्शाँ की मिटा दे तिरे होंटों पे ऐसा रंग पाँ है तुझे कहता हूँ सुन ओ वहशत-ए-दिल वहाँ ले चल जहाँ वो दिल-सिताँ है वो हों नाज़ुक-मिज़ाज ऐ हम-सफ़ीरो रग-ए-गुल मुझ को ख़ार-ए-आशियाँ है मुआ जाता हूँ मैं तर्ज़-ए-निगह से तिरे लब की मसीहाई कहाँ है बुला कर उस से दो बातें तो सुन ले ये कहते हैं कि 'गोया' ख़ुश-बयाँ है