जो पूरे होने से रह गए थे वो ख़्वाब रक्खे हुए हैं घर में यक़ीन मानो पुरानी रुत के गुलाब रक्खे हुए हैं घर में तुम्हारे लफ़्ज़ों की धीमी ख़ुश्बू हवास-ए-ख़मसा को नोचती है ख़तों की सूरत में सच कहूँ तो अज़ाब रक्खे हुए हैं घर में विसाल लम्हों का गोश्वारा अलग से लिक्खा है डायरी में अलग से फ़ुर्क़त की बेबसी के हिसाब रक्खे हुए हैं घर में हमें पढ़ाना है अपने बच्चों को अपनी नस्लें संवारनी हैं इसी लिए तो हम अपनी हालत ख़राब रक्खे हुए हैं घर में