जो समझते थे मर गया हूँ मैं देख लें सब हरा-भरा हूँ मैं अपने डर में ही मुब्तला हो कर अपने अंदर छुपा हुआ हूँ मैं सुन रहे हैं सभी तवज्जोह से तेरी बातें जो कर रहा हूँ मैं ऐ हसीं शख़्स अब तिरी मर्ज़ी तेरी आँखों पे मर चुका हूँ मैं मैं बस इक काम से मिला था उसे वो समझती है मुब्तला हूँ मैं अपना नुक़सान करने वाला हूँ आज-कल ख़ुद से ही ख़फ़ा हूँ मैं मुझ को मसरूफ़ियत है दफ़्तर की वो समझता है बेवफ़ा हूँ मैं मैं वही हूँ वही 'सग़ीर' अहमद तेरे दिल में कभी रहा हूँ मैं