तुम्हारे हुस्न से रौशन सहर को देखते हैं तुम्हारे हुस्न से शम्स-ओ-क़मर को देखते हैं तुम्हारे हुस्न से हम हर बशर को देखते हैं तुम्हारे हुस्न से हम ईश्वर को देखते हैं तुम्हारे हुस्न से चमकी है शाद मेरी ज़मीन सो अहल-ए-अर्श झुके पाक सर को देखते हैं तुम्हारे हुस्न से सोने के हो गए हैं हुरूफ़ तो शाइ'रों में भी इफ़रात-ए-ज़र को देखते हैं तुम्हारे हुस्न से क़ानून कल-अदम हैं तमाम सो मुंसिफ़ीन तुम्हारी नज़र को देखते हैं