जो शख़्स भी मिला है वो इक ज़िंदा लाश है इंसाँ की दास्तान बड़ी दिल-ख़राश है दामन दरीदा क़ल्ब-ओ-नज़र ज़ख़्म ज़ख़्म हैं अब शहर-ए-आरज़ू में यही बूद-ओ-बाश है बस अब तो रह गई है दिखावे की ज़िंदगी साँसों के तार तार में एक इर्तिआ'श है मिट्टी ने पी लिया है हरारत भरा लहू जोश-ए-नुमू मिला तो बदन क़ाश क़ाश है काँटों ने भी ख़िज़ाँ की ग़ुलामी क़ुबूल की देखो तो आज चेहरा-ए-गुल पुर-ख़राश है वो दौर अब कहाँ कि तुम्हारी हो जुस्तुजू इस दौर में तो हम को ख़ुद अपनी तलाश है 'अफ़ज़ल' वो बन सँवर के तो आ जाएँगे कभी आईना-ए-हयात मगर पाश पाश है