वो जीने भी नहीं देता वो मरने भी नहीं देता वो मुझ को अपने पहलू में ठहरने भी नहीं देता सुनाऊँ मैं किसे ये जो कहानी इस सफ़र की है शजर है इक कहीं जो साया करने भी नहीं देता निशाँ दिखने लगे हैं जब से चेहरे पे जुदाई के ये शीशा चैन से मुझ को सँवरने भी नहीं देता यूँ तो रोता है हर इक शख़्स हिज्र-ए-यार में 'तानी' ग़ुरूर अपना है जो अब आहें भरने भी नहीं देता