जो सोचता हूँ अगर वो हवा से कह जाऊँ हवा की लौह पे महफ़ूज़ हो के रह जाऊँ ये क्या यक़ीन कि तू मिल ही जाएगा मुझ को तिरी जुदाई का जाँ लेवा दिक तो सह जाऊँ ख़ुद अपने आप को देखूँ वरक़ वरक़ कर के किसी के सामने जाऊँ तो तह-ब-तह जाऊँ खड़ा हूँ सूरत-ए-दीवार रेग-ए-साहिल पर ज़रा सी मौज भी आए तो घुल के बह जाऊँ मिरे ख़ुदा मुझे इज़हार की वो क़ुदरत दे मुझे जो कहना है इक लफ़्ज़ में ही कह जाऊँ हरीफ़-ए-कोशिश-ए-परवाज़ है ये मौसम-ए-बर्फ़ मैं आशियाँ में ही पर खोल खोल रह जाऊँ चटान बन के भी कब तक बचा रहूँगा 'रियाज़' मिसाल-ए-ख़स अभी सैल-ए-ज़माँ में बह जाऊँ