जो ताब-ए-दीद मिली भी तो क्या दिखाई दिया दिलों के बीच अजब फ़ासला दिखाई दिया सहर का निकला हुआ मैं जो शाम को लौटा तो मेरे घर में कोई दूसरा दिखाई दिया ख़ला में बस गए सब लोग एक इक कर के ज़मीं पे जाने ये क्या हादिसा दिखाई दिया उड़ाते जाते हो ख़ुद को ये किस तरफ़ यारो सफ़र में क्या कोई रस्ता नया दिखाई दिया न रास आया मुझे मेरी क़ुर्बतों का सफ़र मिरा ख़याल भी मुझ से जुदा दिखाई दिया न बाढ़ आई न तूफ़ान ही उठे इमसाल समुंदरों का भरम टूटता दिखाई दिया तिरी निगाह की गहराइयों में देखा तो मिरा वजूद पिघलता हुआ दिखाई दिया जहाँ पे साँस भी लेना था एक जुर्म 'ज़फ़र' वहाँ भी मेरा लहू बोलता दिखाई दिया