जो तमाम उम्र बन कर मिरा हौसला रही है वही आज मेरी ग़ैरत मुझे आज़मा रही है मिरी फ़िक्र जाने मुझ को कहाँ ले के जा रही है कि क़दम क़दम पे मंज़िल सर-ए-राह आ रही है नहीं छोड़ती है मुझ को किसी मोड़ पर ये दुनिया मैं इसे रुला रहा हूँ ये मुझे रुला रही है तू ये जानता है फिर भी नहीं फ़िक्र आख़िरत की तिरी मौत रफ़्ता रफ़्ता तिरे पास आ रही है जो अब आ गए हो तुम तो मुझे छोड़ कर न जाना कि तुम्हारे बिन ये हस्ती बड़ी बे-मज़ा रही है मिरी ज़िंदगी के मालिक मैं ये तुझ से पूछता हूँ मुझे क्यों जहाँ में भेजा मिरी क्या ख़ता रही है ये न हो कि वक़्त-ए-आख़िर रहे दिल की बात दिल में मिरी जान अब तो आ जा मिरी जान जा रही है जो तुम्हें मिला है मंसब उसे दाइमी न समझो किसी एक की हुकूमत यहाँ कब सदा रही है मुझे अब ये लग रहा है वो ख़िज़ाँ थी ठीक 'रहबर' ये बहार कैसे कैसे नए गुल खिला रही है