जो तेरे नक़्श-ए-कफ़-ए-पा पे चल गए होते तो मेहर-ओ-माह से आगे निकल गए होते तुम्हारा नाम लबों पर जो आ गया होता तो गिरने वाले यक़ीनन सँभल गए होते हम अपने जोश-ए-जुनूँ को जो ज़ब्त कर जाते तो हादसात के तेवर बदल गए होते समझ सका न कोई अज़्मत-ए-वफ़ा वर्ना हमारे ख़्वाब हक़ीक़त में ढल गए होते हमारी तिश्ना-लबी मस्लहत समझ वर्ना हमारे वास्ते शीशे पिघल गए होते चमन को ख़ून-ए-जिगर कौन बख़्शता 'नादिम' जो हम भी जानिब-ए-सहरा निकल गए होते