जो तिरे साथ में कटी ही नहीं वो मिरे यार ज़िंदगी ही नहीं बुझ गया वो दिया मोहब्बत का दूर तक जैसे रौशनी ही नहीं हो गई सब सिफ़ारिशें नाकाम पैरवी इश्क़ में चली ही नहीं बद-गुमानी में कह गया होगा हम से बढ़ कर तो आदमी ही नहीं रंज की सल्तनत में ज़िंदा हूँ मो'जिज़ा है कि साँस ही नहीं तू गया जब से दिल में आने की सुन इजाज़त किसी को दी ही नहीं कर गई कूच तू ने क्यों सोचा मैं तो दिल से तिरे गई ही नहीं जाम आँखों से पी लिया उस ने मय-कदे की ख़बर तो ली ही नहीं इतना तन्हा वो कर गया 'रौशन' तीरगी उम्र की खुली ही नहीं