आप की रहबरी नहीं होती ज़िंदगी ज़िंदगी नहीं होती रू-ब-रू तुम से गर नहीं आते दिल की धड़कन थमी नहीं होती चाहे दरवेश वो क़लंदर हो ख़्वाहिशों में कमी नहीं होती ज़िक्र-ए-जानाँ न जिस में शामिल हो बंदगी बंदगी नहीं होती मुख़्तलिफ़ है मिज़ाज दोनों का नस्र में शायरी नहीं होती दिल के मारों को मिलती जो मंज़िल तो यहाँ ख़ुद-कुशी नहीं होती वक़्त रहते गले लगा लो तुम प्यार में बे-रुख़ी नहीं होती तुम अगर छोड़ कर नहीं जाते ग़म-ज़दा ज़िंदगी नहीं होती लाख कोशिश करूँ मगर 'रौशन' दर्द-ए-दिल में कमी नहीं होती