जो तिरे दर पे मेरी जाँ आया मर गया कहता मैं कहाँ आया देखें अब किस का पर्दा उट्ठेगा हर्फ़-ए-शिकवा सर-ए-ज़बाँ आया मत उठा इस को सौ जिहत से हाए दर पे तेरे ये ना-तवाँ आया तेरे हाथों से बे-क़रारी-ए-दिल जी हमारा भी अब ब-जाँ आया तू तो इक ही तरफ़ से याँ से गया ग़म हज़ारों तरफ़ से याँ आया मर ही जाना भला है मीर-'रज़ा' यार अब बहर-ए-इम्तिहाँ आया