जो तू ही सनम हम से बे-ज़ार होगा तो जीना हमें अपना दुश्वार होगा ग़म-ए-हिज्र रक्खेगा बे-ताब दिल को हमें कुढ़ते कुढ़ते कुछ आज़ार होगा जो इफ़रात-ए-उल्फ़त है ऐसा तो आशिक़ कोई दिन में बरसों का बीमार होगा उचटती मुलाक़ात कब तक रहेगी कभू तो तह-ए-दिल से भी यार होगा तुझे देख कर लग गया दिल न जाना कि उस संग-दिल से हमें प्यार होगा लगा करने हिज्रान सख़्ती से सख़्ती ख़ुदा जाने क्या आख़िर-ए-कार होगा यही होगा क्या होगा 'मीर' ही न होंगे जो तू होगा बे-यार ग़म-ख़्वार होगा