लेखे की याँ बही न ज़र-ओ-माल की किताब है अपने हक़ में वा-शुद-ए-दिल फ़ाल की किताब बुलबुल का ज़ेर-ए-बाल न बेजा समझ तू है उस के मुतालेए में पर-ओ-बाल की किताब मज़कूर ज़ुल्फ़ है मिरे दीवाँ में सर-ब-सर हर सफ़हा उस का क्यूँ न बने जाल की किताब फ़ुर्सत मिली तो ख़ामा-ए-बाल-ए-तदर्व से आशिक़ तिरे लिखेंगे तिरी चाल की किताब जुज़ यस्फ़िकुद्दिमाअ की आया न वो पढ़े क़ुरआँ हो गरचे उस बुत-ए-क़त्ताल की किताब शक्ल-ए-उरूस छट न ख़ुश आवे मुझे कभी रख दें जो मेरे सामने अश्काल की किताब देखे जो ग़ौर से कोई दीवाँ मिरे तो हाँ हर बैत है ज़माने के अहवाल की किताब शर्म-ए-गुनह से आब हुआ गरचे मैं वले धोई गई न नामा-ए-आमाल की किताब पाया न साद-ओ-नहस से कोई वरक़ तही तारों की मैं ने ख़ूब जो ग़िर्बाल की किताब किस तरह रोज़-ए-हश्र वो होवेंगे सुर्ख़-रू देखा किए हैं याँ जो ख़त-ओ-ख़ाल की किताब इस दहर में बुलंदी-ए-अज़हान-ए-कुंद से मैं गरचे जानता था इन्हें फ़ाल की किताब हर जिल्द 'मुसहफ़ी' तिरे दीवान की वले नुक़्तों से शक के बन गई रुम्माल की किताब