जो उन से कहो वो यक़ीं जानते हैं वो ऐसे हैं कुछ भी नहीं जानते हैं बड़े जन्नती हैं ये मय-ख़्वार ज़ाहिद मय-ए-तल्ख़ को अंग्बीं जानते हैं जवानी ख़ुद आती है सौ हुस्न ले कर जवाँ कोई हो हम हसीं जानते हैं शब-ए-माह बनती है हर शब मिरे घर ये सब बादा-वश मह-जबीं जानते हैं बनावट भी इक फ़न है जो जानता हो तिरी सादगी कुछ हमीं जानते हैं निगाहें न आँखों के घुँघट से निकलें अदाएँ ग़ज़ब शर्मगीं जानते हैं तिरी कम-निगाही से उभरे हैं फ़ित्ने तुझे ग़ैर चीं-बर-जबीं जानते हैं मिरी जान पर रात बन बन गई है मिरा हाल कुछ हम-नशीं जानते हैं जो वाक़िफ़ नहीं लुत्फ़-ए-तज्दीद से कुछ वो तौबा की लज़्ज़त नहीं जानते हैं वो शर्मीली आँखें वो शर्मीली बातें वो हँसना भी खुल कर नहीं जानते हैं मिरी बुत-परस्ती भी है हक़-परस्ती मिरा मर्तबा अहल-ए-दीं जानते हैं बड़े पाक तीनत बड़े साफ़ बातिन 'रियाज़' आप को कुछ हमीं जानते हैं