रुख़्सत-ए-शब का समाँ पहले कभी देखा न था इतना रौशन आसमाँ पहले कभी देखा न था दूर तक फैला हुआ सहरा नज़र आया मुझे एक ज़र्रा भी जहाँ पहले कभी देखा न था दीदनी था मौज-ए-दरिया का नशात बे-पनाह जल्वा-ए-आब-ए-रवाँ पहले कभी देखा न था अहल-ए-दुनिया तो हमेशा ही से ऐसे थे मगर इश्क़ इतना ना-तवाँ पहले कभी देखा न था दिल परेशाँ हो गया रंग-ए-ज़वाल-ए-हुस्न से आग देखी थी धुआँ पहले कभी देखा न था इस क़दर हैराँ न हो आँखों में आँसू देख कर तुझ को इतना मेहरबाँ पहले कभी देखा न था